Friday, 20 January 2012



ज़माने ने हमें ये रंग अब कैसा दिखाया है ,
जो कल था खून अब उस खून को पानी बनाया है ......
बहुत दावे किये जाते रहे इंसान होने के , 
मगर किसने यहाँ इंसान का रिश्ता निभाया है ......

कहें दर्द-इ-दिल ए दोस्तों किस्से भला अपना ,
की हर सीने में दिल की जगह पत्थर छिपाया है ......
समझ में नहीं आता की माजरा क्या है ,
किसी की चाल है या आज यह बुरा वक़्त आया है .......

किसे समझाए हम की कोई समझना हीं न चाहे ,
अकल्वालों ने सबको अक्ल का दुश्मन बनाया है ......
कहाँ तक लिपटते जाए किन्ही पर्चायिओं से  हम , 
की अपना हीं साया आज लगता पराया  है .......

खुदा को या मुक्क़दर को भला हम किसलिए कोसें , 
की अपने हाथ से जब चमन अपना जलाया  है ......
वहीँ हम बेहयाई से अक्ल उनको सिखाते हैं ,
जिन्होंने ऊँगली पकड़ कर हमको चलना सिखाया है .......... 

मैं अपने हीं ग़मों से तड़पता हूँ चीखता हूँ अक्सर ,
ज़मानें के गमों ने तो और भी मुझे सताया है .......
ज़माने ने हमें यह रंग अब कैसा ................ 


No comments:

Post a Comment